अर्धशिशी की बिमारी से मुक्ती मिली !
सौ. सरस्वती विनायक होगाडे
इचलकरंजी
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पिछले 30 साल मैं अर्धशिशी की सरदर्द से जूंझ रही हूँ। इन तीस साल में मुझे बहुत बीमारियों का सामना करना पडा। पीलिया, टाइफॉईड, टी. बी., मासिक धर्म की तकलीफ, घूटनों के दर्द इत्यादि एक रोग ठीक हो जाता तो दूसरा पैदा हो जाता था। सरदर्द की गोली हर रोज खानी पडती थी। लेकिन कोई इलाज न हो पा रहा था। दिन में एक घंटा किसी तरह बीत जाता था।
ऐसा एक दिन भी नहींं हुआ कि सरदर्द नहीं हुआ, और एक भी गोली नहीं खानी पडी। मैं बहुत निराश हो गई थी, ऐसा लगता था मेरे सरदर्द पर एक भी उपाय नहीं है। मैं अब मर जाऊंगी। इन गोलीयों से मुझे साईड इफेक्ट हो जाएंगे। और दो ही महिनों में मैंने बिस्तर पकड लिया। किसी भी चीज में मन नहीं लगता था। बिलकुल चुपचाप हो गई थी। ऐसे में मेेरे पती और बच्चों ने मुझे शिवाम्बु की जानकारी दी। पहले मैंने बहुत विरोध किया, मैं तैयार नहीं थी। लेकिन सबने मुझे समझाबूझाकर मुझे यहाँ लाया।
यहाँ आने के बाद मुझे इस जगह से जैसे प्यार ही हो गया। यहाँ का वातावरण देखकर मैं बहुत प्रसन्न हो गई। जल्द ही उपचार चालु हो गए। पहले तीन दिन मुझे बहुत तकलीफ हुई। सर में बहुत दर्द हो रहा था। लेकिन डॉ. नितीन सर जी ने मुझे धीरज दिया। मन को तैयार किया। चौथा दिन निकला वह बिना सरदर्द का। जागने के बाद सरदर्द न होने का वह मेरा पहला दिन था। मुझे बहुत आनंद हुआ। अब मैने एक भी गोली नहीं ली है। और इसके अलावा मुझे और क्या खुशी हो सकती है। मेरे पास सब कुछ था लेकिन मुझे जो चाहिये था वह मुझे आनंदकुंज में मिला। यह मैं जिंदगीभर नहीं भूलूंगी।
मैं तो कहती हूँ कि डॉ. नितीन पाटील, डॉ. सारंग पाटील यह ब्रम्हा, विष्णू और महेश ही है, जिन्होंने इस धरती पर, इस पहाडी पर अवतार लिया हैं। आज आधुनिक युग में निसर्ग के विरुद्ध जा रहा है जिसका दुष्परिणाम सारे समाज पर हो रहा है। मनुष्य को निसर्ग की तरफ लाने का कार्य उन्होंने जो हाथ में लिया है, उसमें जरुर यश प्राप्त होगा। सारे लोगों को भगवान सद्बुद्धी दे, और यहाँ एक बार आने के लिए प्रवृत्त करें। मैं अपनी तरफ से शिवाम्बु और निसर्गोपचार का प्रचार करुंगी। यहाँ सारे सेवक बहुत अच्छे है। लोगों की मन से सेवा करते है। उनकी सेवा मैं हमेशा याद रखूंगी। भगवान इन सबको दीर्घायू दे, यही प्रार्थना!